अयोध्या का मामला जितना पुराना है उतनी ही पेचीदा भी. इस मामले में एक नया मोड़ तब आया था जब 1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने मंदिर के शिलान्यास की मंजूरी दी थी. कहा जाता है कि यूपी के प्रमुख संत देवराहा बाबा के कहने पर ऐसा किया गया था. नारायण दत्त तिवारी उस समय यूपी के मुख्यमंत्री थे.
ऐसे उलझता गया मुद्दा
1980 में बीएचपी ने धर्मसंसद में राम मंदिर बनाने का प्रण लिया था. इसके बाद मुद्दा गरमाया जाने लगा. 1982 में फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने आदेश दिया कि विवादित परिसर का ताला खोल दिया जाए. उन्होंने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार भी दे दिया.
शाहबानो मसले की काट चाहिए थी
इस बीच शाहबानो को गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध मुस्लिम संगठन जोरदार तरीके से करने लगे थे. इनके दबाव में केंद्र की राजीव सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले मुआवजे को निरस्त करते हुए मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. इस दौरान आडवाणी राम मंदिर को मुद्दा बनाकर हिंदुओं में अपनी पकड़ मजबूत करते जा रहे थे. राजीव को बताया गया कि कोई बड़ा कदम ही हिंदुओं की कांग्रेस से नाराजगी दूर कर सकता है.
बूटा सिंह बने थे सूत्रधार
शिलान्यास के ठीक एक हफ्ते पहले राजीव गांधी की मुलाकात उस समय के मशहूर बाबा देवराहा से कराई गई थी. गोरखपुर में हुई इस मुलाकात के सूत्रधार बूटा सिंह थे. एक आईपीएस अधिकारी की मदद से यह संभव हुआ जो देवराहा बाबा के चेले थे. बाबा ने उनसे कहा था कि ‘बच्चा हो जाने दो’. यानी राम मंदिर का भूमि पूजन हो जाने दो. इस मुलाकात में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह भी राजीव गांधी के साथ थे. इसके बाद 10 नवंबर 1989 को राम मंदिर की आधारशिला रखी गई थी.
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक आर. पी. जोशी ने मीडिया में यह बात कबूल की थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर राम मंदिर की आधारशिला रखी गई. जोशी ने यह भी बताया कि वे केवल दिल्ली और लखनऊ में बैठे अपने उच्चाधिकारियों के आदेशों का पालन कर रहे थे.