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क्या इस वक्त अजित डोभाल देश के दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं?

नई दिल्ली। राजस्थान चुनाव जीतने के बाद अशोक गहलोत मीडिया से बात करने आए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करना सबको समझ में आया, लेकिन उन्होंने वसुंधरा राजे और अमित शाह का नाम कम लिया और अजित डोभाल के बारे में बात करने लगे. चुनाव में हार-जीत का देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से क्या लेना-देना? यह सवाल जयपुर में मौजूद पत्रकारों को शायद ही समझ में आया हो. लेकिन पिछले कुछ समय में दिल्ली के समीकरण बड़ी तेजी से बदले हैं.

भारत में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति प्रधानमंत्री होते हैं, यह शाश्वत सत्य है. और दूसरा सबसे शक्तिशाली शख्स वह, जिस पर प्रधानमंत्री सबसे ज्यादा यकीन करते हैं. कुछ महीने पहले तक यह पद निर्विवादित तौर पर अमित शाह के पास था. लेकिन अब हालात और समीकरण तेजी से बदल रहे हैं.

सरकारी महकमे में बहुत ऊपर तक की खबर रखने वाले एक सूत्र बताते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार के सारे ‘ऑपरेशन’ इस वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार देख रहे हैं. पहले ये ऑपरेशन शुद्ध सुरक्षा से जुड़े होते थे, लेकिन अब इनमें कुछ सियासी मसले भी जुड़ गये हैं. भाजपा के एक बड़े नेता के करीबी बताते हैं कि अध्यक्ष अमित शाह की छवि ‘डिलीवर’ करने वाले नेता की थी, लेकिन गुजरात चुनाव के बाद से उनका लगातार ग्राफ नीचे गिरता जा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरा गुजरात चुनाव अमित शाह के भरोसे लड़ा था, लेकिन अपने ही घर में मोदी-शाह की जोड़ी हारते-हारते बची. इसका श्रेय राजस्थान से गुजरात पहुंचे अशोक गहलोत को भी दिया गया. अमित शाह के मुकाबले अशोक गहलोत की रणनीति वहां ज्यादा कारगर दिख रही थी.

गुजरात चुनाव की समीक्षा बैठक में मौजूद एक नेता ने कुछ पत्रकारों को बताया कि नरेंद्र मोदी ने उसी दिन भाजपा अध्यक्ष को आने वाली मुश्किलों के लिए सावधान कर दिया था. प्रधानमंत्री ने महीनों पहले ही अमित शाह से कह दिया था कि अगर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी यही हाल रहा तो कांग्रेस को हराना मुश्किल होगा.

उस वक्त अमित शाह की टीम ने नरेंद्र मोदी को भरोसा दिलाया था कि वे वक्त रहते अगले विधानसभा चुनावों का इंतजाम कर लेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इन तीन राज्यों में कांग्रेस के हाथों मिली हार भाजपा को बेहद चुभ रही है. दिल्ली में भाजपा बुरी तरह हारी, लेकिन जीतने वाले अरविंद केजरीवाल थे. बिहार में भाजपा हारी, वहां भी जीत का सेहरा नीतीश और लालू के महागठबंधन के सिर बंधा. कर्नाटक में भाजपा पीछे रह गई लेकिन वहां जेडीएस के कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने. लेकिन छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे तीन हिंदीभाषी राज्यों में उसकी कांग्रेस से आमने-सामने की लड़ाई थी. यहां पर राहुल गांधी की टीम से मिली करारी हार कई लोगों को हजम करने लायक नहीं लग रही है.

सुनी-सुनाई से कुछ ज्यादा है कि हार के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष के बीच संवाद का सिलसिला पहले जैसा नहीं रहा है. कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा द्वारा मध्य प्रदेश में सरकार बनाने की कोशिश को प्रधानमंत्री दफ्तर से ही रोका गया और नरेंद्र मोदी ने खुद शिवराज से बात की. शिवराज ने भी प्रधानमंत्री को सरकार बनाने की कोशिश ना करने की सलाह दी और फिर दोनों ने मिलकर फैसला किया कि भाजपा विपक्ष में बैठेगी.

कुछ हफ्ते पहले तक अमित शाह ही भाजपा के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री के बीच पुल का काम किया करते थे. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर अमित शाह से मोदी का भरोसा कम हो रहा है तो किस शख्स पर उनका भरोसा बढ़ रहा है. इस सवाल का दो शब्दों में जवाब है – अजित डोभाल.

जब से सीबीआई संकट सामने आया, उसके बाद से डोभाल लगातार प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार के साथ-साथ उनके राजनीतिक सलाहकार की भूमिका भी निभा रहे हैं. कांग्रेस के एक बड़े नेता बताते हैं कि आधी रात को सीबीआई चीफ बदलने का मामला हो या फिर प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के मुखिया का चुनाव हो, अजित डोभाल की पसंद को तरजीह दी गई.

जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब भी ऐसे ही हालात बन गये थे. उस वक्त भी तब के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्रा देश के दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माने जाते थे. लेकिन बृजेश मिश्रा सिर्फ सुरक्षा सलाहकार ही नहीं थे. वे प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव भी थे. इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय का बॉस भी माना जाता था. अजित डोभाल और बृजेश मिश्रा की पोजिशन में एक और फर्क है. बृजेश मिश्रा की रुचि विदेश मामलों में ज्यादा थी, और डोभाल आईबी के पूर्व प्रमुख हैं.

दिल्ली में सियासी समीकरण इतनी तेजी से बदल रहे हैं कि अमित शाह से संबंध बढ़ाने में जुटे पत्रकार अब अमित डोभाल से दोस्ती करने में लग गए हैं. ऐसे ही एक पत्रकार ने बताया कि अमित शाह की तुलना में अजित डोभाल ज्यादा सुलभ और सहज हैं. यही उनकी यूएसपी भी है. अगर किसी ने डोभाल के नंबर पर डायरेक्ट फोन किया तो वे खुद बात करते हैं. और अगर जान-पहचान पुरानी हो तो फिर लंबी बात भी आराम से हो जाती है.

एक पत्रकार महोदय बताते हैं कि नरेंद्र मोदी को इस वक्त एक ऐसे शख्स की सख्त जरूरत है जो हाई प्रोफाइल ना हो, लेकिन जिसका स्ट्राइक रेट अच्छा हो. अजित डोभाल इस कसौटी पर खुद को साबित करने में जुटे हैं. जब भी कोई पत्रकार उनसे इंटरव्यू का जिक्र करता है तो वे हंसकर कहते हैं, आओ बात करते हैं, लेकिन कैमरा लेकर मत आना. अगर आप डोभाल के दफ्तर में जाएंगे तो वहां ज्यादा शोशेबाजी नहीं दिखेगी. बहुत मुमकिन है डोभाल पहली मंजिल पर आपको टहलते हुए मिल जाएं. अमित शाह जब गुजरात में थे तब वे भी कुछ-कुछ ऐसे ही थे. लेकिन अब दिल्ली में गुजराती पत्रकारों के साथ भी ऐसा नहीं होता.

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