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INDvsAUS: विराट कोहली की पसंद नहीं, मजबूरी थी सिडनी टेस्ट में फॉलोऑन देना

भारत ने सिडनी में खेले जा रहे चौथे टेस्ट (Sydney Test) में जैसे ही ऑस्ट्रेलिया को फॉलोआन कराया, वैसे ही एक बहस शुरू हुई कि उसने आखिर ऐसा क्यों किया? बहस की बड़ी वजह भारतीय कप्तान विराट कोहली के दो मैचों में दो अलग-अलग फैसले हैं. भारत को इससे पहले मेलबर्न में खेले गए तीसरे टेस्ट (Melbourne Test) में भी ऑस्ट्रेलिया को फॉलोऑन कराने का मौका मिला था, लेकिन तब उसने ऐसा नहीं किया. फिर सिडनी में फॉलोऑन दे दिया. भारत 4 टेस्ट मैचों की मौजूदा सीरीज (India vs Australia) में 2-1 से आगे है.

मेलबर्न में 292 रन की बढ़त के बाद नहीं दिया फॉलोऑन
भारत ने मेलबर्न में खेले गए टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलिया पर 292 रन की बढ़त ली थी, लेकिन उसने फॉलोऑन नहीं दिया. आखिर क्यों? जवाब यह है कि ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी तीसरे दिन तीसरे सत्र में सिमटी. तब दो दिन और एक सेशन (कुल 7 सोशन) का खेल बाकी था. अगर विरोधी टीम के पास बैटिंग का ज्यादा वक्त हो तो वह पलटवार कर सकती है. इसीलिए भारत ने फॉलोऑन नहीं देने की सुरक्षात्मक रणनीति अपनाई.

क्या मेलबर्न में पलटवार संभव था? 
हां, ऐसा संभव था. जब दोनों टीमों की पहली पारी खत्म हुई, तब खेल में7 सेशन का खेल बाकी था. पलटवार कैसे संभव था, इसे ऐसे समझें. संभव है कि ऑस्ट्रेलिया दूसरी पारी में 450-500 के आसपास स्कोर बना देता. तब भारत को करीब 200 रन के करीब लक्ष्य मिलता. मैच के आखिरी दिन यह लक्ष्य हासिल करना किसी भी टीम के लिए मुश्किल होता. इसलिए भारत ने फॉलोऑन न देकर खुद बैटिंग की और फिर ऑस्ट्रेलिया को 399 का लक्ष्य दिया. इससे भारत के हारने की सारी संभावनाएं खत्म हो गईं. मैच में दो ही परिणाम आ सकते थे, भारत की जीत या ड्रॉ.

तो फिर सिडनी टेस्ट में ऐसा क्या बदला कि फॉलोऑन दिया ?
सिडनी टेस्ट मैच में जब दोनों टीमों की पहली पारी खत्म हुई, तब तक चौथे दिन दूसरे सेशन का खेल हो चुका था. ऑस्ट्रेलिया पहली पारी में 300 रन पीछे था और मैच में सिर्फ 4 सेशन (एक दिन और एक सेशन) बाकी थे. यहां ऑस्ट्रेलिया के पलटवार करने की सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं. वह दूसरी पारी में कितनी भी अच्छी बैटिंग करे, तब भी भारत 70-80 रन से बड़ा लक्ष्य नहीं दे सकता. यानी, भारत यह मैच नहीं हार सकता (देखें वीडियो).

तो क्या हार के डर से तय होता है फॉलोऑन देना? 
मेलबर्न में ऑस्ट्रेलिया पलटवार कर सकता था, लेकिन सिडनी में नहीं कर सकता. फिर सवाल यह उठता है कि भारतीय कप्तान, ऑस्ट्रेलिया के पलटवार की संभावनाओं पर यह तय कर रहे हैं कि फॉलोऑन देना है या नहीं? इसका जवाब है- नहीं. विराट कोहली या दुनिया का कोई भी कप्तान अपनी जीत की संभावना के आधार पर यह तय करता है कि फॉलोऑन देना है या नहीं. हम कह सकते हैं कि मेलबर्न में विराट कोहली के दोनों हाथों में लड्डू थे. वे फॉलोऑन देकर और नहीं देकर भी मैच जीत सकते थे. सिडनी में हालात अलग हैं.

तो क्या सिडनी में फॉलोऑन देना विराट की मजबूरी है?
मजबूरी तो नहीं, लेकिन हम यह कह सकते हैं कि उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं थे. जब मैच के चौथे दिन ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी सिमटी, तब दिन में 35 ओवर का खेल बाकी था. अगर भारत बैटिंग करता तो वह कम से कम 25-28 ओवर बैटिंग करना चाहता, जिससे वह ऑस्ट्रेलिया को 400 से बड़ा लक्ष्य दे सके. ऐसा होने पर ऑस्ट्रेलिया को करीब 90-95 ओवर बैटिंग करने को मिलते, जिससे वह मैच तो नहीं जीतता, लेकिन ड्रॉ करा सकता था. अब फॉलोऑन खेलते हुए ऑस्ट्रेलिया या तो 300 के भीतर आउट होगा, या भारत छोटा सा लक्ष्य देगा. अगर छोटा लक्ष्य हो और ओवर कम हो, तब भी टी20 स्टाइल में इसे हासिल किया जा सकता है.

फॉलोऑन क्यों देते हैं, क्या है नियम? 
फॉलोऑन का नियम टेस्ट और प्रथमश्रेणी मैचों में है. क्रिकेट के अन्य फॉर्मेट में ऐसा नहीं होता है. फॉलोऑन सिर्फ वही टीम दे सकती है, जो मैच में पहली पारी में बैटिंग करे. टेस्ट मैच में अगर कोई टीम विरोधी टीम पर 200 रन की बढ़त लेती है, तो वह उसे दोबारा बैटिंग करने को कह सकती है. लेकिन यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है. फॉलोऑन कराना कोई बाध्यता नहीं है. कप्तान इसका फैसला लेने से पहले, सिर्फ अपनी टीम की बढ़त ही नहीं, विरोधी टीम की वापसी की क्षमता, पिच की स्थिति, मौसम देखने के बाद ही यह तय करता है कि फॉलोऑन देना है या नहीं.

फॉलोऑन देकर भी तीन बार हार चुका है ऑस्ट्रेलिया
टेस्ट क्रिकेट के 141 साल के इतिहास में सिर्फ तीन ऐसे मौके आए हैं, जिनमें कोई टीम फॉलोऑन देकर भी हारी है. संयोग से हारने वाली टीम तीनों बार ऑस्ट्रेलिया ही रही है. जीतने वाली टीमों भारत और इंग्लैंड हैं. भारत ने 2001 में कोलकाता टेस्ट में फॉलोऑन खेलने के बाद ऑस्ट्रेलिया को 171 रन से हराया था. इंग्लैंड ने 1894 और 1981 में फॉलोऑन खेलकर भी मैच जीता है.

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