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सपा-बसपा में हो गया गठबंधन, लेकिन सीट बंटवारे पर असली पिक्चर अभी बाकी है

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों के लिए समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) गठबंधन की शनिवार को औपचारिक घोषणा के बाद अब चर्चा ये है कि कौन सी सीट किस दल के खाते में जाएगी. नेताओं और कार्यकर्ताओं से लेकर समर्थकों के बीच इस सवाल को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है. इस संबंध में खबर ये है कि दोनों दलों के अध्यक्ष अखिलेश यादव और मायावती अगले एक सप्ताह में यह तय कर लेंगे कि कौन किस सीट पर चुनाव लड़ेगा. वहीं दोनों दलों के साझा चुनाव अभियान की रूपरेखा पर सूत्रों के मुताबिक बताया जा रहा है  कि दोनों नेता एक साथ करीब 20 रैलियां कर सकते हैं, जिनमें बीजेपी के गढ़ और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पर फोकस किया जाएगा.

इस गठबंधन की रूपरेखा से जुड़े सपा के सूत्रों ने शनिवार को बताया कि दोनों दलों के बीच बंटवारे वाली सीटों पर आपसी सहमति लगभग बन गई है. इसकी सार्वजनिक घोषणा बसपा सुप्रीमो मायावती के 15 जनवरी को जन्मदिन के मौके पर या इसके एक-दो दिन के भीतर कर दी जाएगी. इससे पार्टी कार्यकर्ता समय रहते चुनावी तैयारियों में जुट सकेंगे. लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान का आगाज अखिलेश यादव और मायावती की उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों में साझा रैलियों से होगा. बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इसकी शुरुआत लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी और प्रयाग सहित अन्य प्रमुख शहरों से होगी.

उन्होंने बताया कि दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व चुनाव प्रचार अभियान को जल्द अंतिम रूप देकर रैलियों की जगह और समय का निर्धारण करेंगे. इस गठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल (Rashtriya Lok Dal) की सीटों को लेकर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं होने के बारे में जब सपा के एक नेता ने पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस के लिए छोड़ी गई दो सीटों के अलावा RLD के लिए फिलहाल दो सीट छोड़ गई हैं, लेकिन यह अंतिम आंकड़ा नहीं है. RLD नेताओं के साथ बातचीत और जमीनी वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए सपा-बसपा अपने कोटे की अधिकतम एक या दो सीट छोड़ने पर विचार कर सकते हैं.

आपको बता दें कि लखनऊ में शनिवार को अखिलेश यादव और मायावती ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन कर सपा-बसपा गठबंधन की औपचारिक घोषणा की. इस दौरान मायावती ने गठबंधन से कांग्रेस को अलग रखने की जानकारी देते हुए इस बात का स्पष्ट संकेत दिया कि यह फैसला सोची समझी रणनीति के तहत भाजपा के पक्ष में कांग्रेस के मतों का ध्रुवीकरण रोकने के लिए किया गया है.

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