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मायावती-अखिलेश की साझा रैली के मायने, UP में ढहा पाएंगे बीजेपी का किला?

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में आज एक बड़ा दिन माना जा रहा है. 23 साल की दुश्मनी भुलाकर 25 साल पहले के तर्ज पर सपा-बसपा एक साथ चुनावी अभियान की शुरुआत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के देवबंद से करने जा रहे हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती और आरएलडी चीफ चौधरी अजित सिंह एक मंच से जनता को संबोधित कर राजनीतिक समीकरण साधने की कवायद करेंगे. बीजेपी के खिलाफ इन तीनों नेताओं के एक मंच पर आने के पीछे सिर्फ रैली ही नहीं बल्कि सियासी मायने भी छिपे हुए हैं.

सूबे में सपा-बसपा ने जब-जब हाथ मिलाया है तब-तब बीजेपी को मात खानी पड़ी है. 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन का दौर था, लेकिन मुलायम-कांशीराम ने 1993 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन कर मैदान ने उतरे तो बीजेपी का पूरी सफाया हो गया. इसी तरह से 2018 में यूपी के उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा ने बीजेपी को धूल चटा दी थी. लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में गठबंधन को अपने इतिहास दोहराने की बड़ी चुनौती है. ऐसे में देवबंद में होने वाली गठबंधन यह रैली चुनावी रणभूमि का मिजाज तय करेगी.

पश्चिम उत्तर प्रदेश की पहले चरण की 8 लोकसभा सीटों के लिए 11 अप्रैल को मतदान होंगे.  सहारनपुर, कैराना, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर सीट है. 2014 के लोकसभा चुनाव में इन आठों सीटों को बीजेपी ने जीता था. लेकिन पिछले साल कैराना सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को मात खानी पड़ी थी और बसपा-सपा के समर्थन से आरएलडी ने जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी.

maya-kanshiram_040719093857.jpgबसपा के संस्थापक कांशीराम के साथ मुलायम सिंह यादव

पश्चिम यूपी एक दौर में बसपा और आरएलडी का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इन दोनों पार्टियों की सियासी जमीन को कब्जा जमाने में कामयाब रही थी. इसी वजह है कि बीजेपी जहां अपने वर्चस्व को बरकरार रखने की जद्दोजहद कर रही है. वहीं, बसपा, आरएलडी और सपा गठबंधन के लिए अपनी खोई हुई जमीन पाने की चुनौती है.

इसी मद्देनजर प्रथम चरण से ही बढ़त लेने के लिए हर राजनीतिक दल पूरी ताकत लगा रहा है. पश्चिम यूपी में बीजेपी ने एक के बाद एक कई रैलियां कर डाली हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन आठ सीटों के लिए मेरठ और सहारनपुर में जनसभा को संबोधित कर चुके हैं. जबकि गठबंधन की पहली रैली रविवार को सहारनपुर में रही है, जिसमें अखिलेश, मायावती और अजित सिंह तीनों नेता किसी मंच पर एक होंगे.

पश्चिमी यूपी का जातीय समीकरण

पश्चिमी यूपी की आठ लोकसभा सीटों पर जातीय समीकरणों पर भी इन तीन नेताओं की निगाहें हैं. इसी खास रणनीति के तहत गठबंधन ने देवबंद क्षेत्र से चुनावी रैलियों का आगाज करने का फैसला किया है. इस रैली के जरिए गठबंधन का प्रयास पश्चिमी यूपी में जाट, मुस्लिम और अनुसूचित जाति का गठजोड़ मजबूत करना माना जा रहा है.

पश्चिम यूपी में दलित, मुस्लिम और जाट मतदाता ही निर्णयक भूमिका में है. इसीलिए समीकरण को साधने के लिए तीनों नेता साथ आए हैं. दलित मतदाताओं को साधने की जहां मायावती कोशिश करेंगी. वहीं, मुस्लिम मतदाताओं को अखिलेश यादव और जाट समुदाय को चौधरी अजित सिंह साधने की कवायद करेंगे. दिलचस्प बात ये है कि बसपा अध्यक्ष मायावती ने राज्यसभा सदस्यता से जिस कारण इस्तीफा दिया था, उसके लिंक भी इसी सहारनपुर से जुड़ता है. ऐसे में मायावती जहां अपने समुदाय को ये संदेश देने की कोशिश करेंगी उनकी आवाज उठाने वाले वह एकलौती नेता हैं. सहारनपुर सीट से मायावती खुद भी प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं, ऐसे में इस सीट को हरहाल में जीतने की उनकी कोशिश है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिम यूपी की अपनी जनसभाओं के दौरान आरएलडी अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह और  जयंत चौधरी पर सियासी प्रहार किए हैं, उसका पलटवार देवबंद में हो रही गठबंधन की सियासी रैली से किया जा सकता है. इतना ही पश्चिम यूपी किसान बेल्ट वाला इलाका है, ऐसे में ऐसे में चौधरी अजित सिंह किसानों के मुद्दे को उठाकर बीजेपी को घेर सकते हैं. इसके अलावा आरएलडी के लिए ये चुनाव करो या मरो की स्थिति वाला है. पिता-पुत्र दोनों की किस्मत का फैसला पहले चरण में है. ऐसे में उन्हें अपने आपको हर में साबित करने की चुनौती है.

वहीं, पहले चरण के लिए गठबंधन के तीनों नेताओं की यही एकलौती रैली है. ऐसे में तीनों नेता एक साथ आकर अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को भी बड़ा संदेश देने की कोशिश है कि वो एक हैं और आप भी एक हो जाएं. सहारनपुर में एक प्रयोग सफल रहता है तो गठबंधन के लिए आगे की राह काफी आसान हो जाएगी. पहले चरण से बने माहौल को सूबे की बाकी हिस्सों में गठबंधन कैश कराने की कोशिश करेगा.

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