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11 साल के बच्चे ने 7000 के भाले से की शुरुआत: ‘सूबेदार’ नीरज चोपड़ा का टोक्यो तक का सफर, एथलेटिक्स में पहला मेडल

जब आप नीरज चोपड़ा की ट्विटर प्रोफाइल पर जाएँगे तो आपकी नजर सबसे पहले उनके पिन किए गए ट्वीट (pinned tweet) पर पड़ेगी। इस ट्वीट में नीरज ने लिखा है, “जब सफलता की ख्वाहिश आपको सोने न दे, जब मेहनत के अलावा और कुछ अच्छा न लगे, जब लगातार काम करने के बाद थकावट न हो तो समझ लेना कि सफलता का नया इतिहास रचने वाला है।” इस ट्वीट को देखने के बाद किसी को भी यह आश्चर्य नहीं होगा कि नीरज चोपड़ा ने वाकई भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया और ऐसा कारनामा करने वाले वो भारत के पहले ट्रैक एंड फील्ड इवेंट्स (एथलेटिक्स) के खिलाड़ी हैं।

हरियाणा के पानीपत जिले के खांद्रा गाँव में 24 दिसंबर 1997 को पैदा हुए नीरज चोपड़ा बचपन में भारी-भरकम शरीर वाले बच्चे थे लेकिन हरियाणा का एक परिवार, जहाँ अपने बच्चों को चुस्त-दुरुस्त और तंदरुस्त रखने का रिवाज है, भला अपने बच्चे को मोटापे का शिकार होते कैसे देख सकता था? फिर क्या था? पिता और चाचा नीरज को पानीपत के शिवजी स्टेडियम ले गए जहाँ उन्हें खेल खेलने के लिए कहा गया। हालाँकि वजन अधिक होने के कारण न तो नीरज दौड़ पा रहे थे और न ही लंबी कूद या ऊँची कूद जैसे खेल खेल पा रहे थे।

लेकिन कहते हैं न कि जीवन में एक दिन ऐसा जरूर आता है जब इंसान का जीवन बदलने वाला होता है। स्टेडियम में सीनियर खिलाडियों को भाला फेंकते हुए देखकर उन्होंने भी भाला उठाया और फेंक दिया। 11 साल की उम्र के लड़के ने जब पहली ही बार में 25 मीटर से भी दूर भाला फेंक दिया तो किसी को भी समझते देर नहीं लगी कि नीरज इसी खेल के लिए बना है। लेकिन तब यह भी शायद ही किसी ने सोचा होगा कि 25 मीटर तक भाला फेंकने वाला यह छोटा सा बच्चा एक दिन ओलंपिक जैसे मंच पर देश का नाम रोशन करेगा।

कहते हैं न कि सफलता मुश्किलों को पार करके ही मिलती है। नीरज के जीवन के शुरूआती दौर में मुश्किल के तौर पर सामने आईं कमजोर आर्थिक परिस्थितियाँ 17 लोगों के संयुक्त एवं किसान परिवार में रहने वाले नीरज को 7,000 रुपए के भाले से ही संतोष करना पड़ा। हालाँकि जैवलिन थ्रो के एक भाले की कीमत लगभग एक से डेढ़ लाख होती है जो नीरज के परिवार के लिए बहुत थी। लेकिन नीरज ने कभी इस मुश्किल को अपने रास्ते नहीं आने दिया। उसी भाले से उन्होंने अभ्यास शुरू किया और इस खेल में उनका ऐसा मन लगा कि रोजाना 7-8 घंटे का अभ्यास उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। नीरज ने जैवलिन थ्रो की ट्रेनिंग लेने के लिए यूट्यूब का भी सहारा लिया।

साल 2013 में यूक्रेन में हुई वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप और 2 साल बाद चीन के वुहान शहर में हुई एशियन चैंपियनशिप में नीरज का प्रदर्शन औसत रहा और वह दोनों प्रतियोगिताओं में क्रमशः 19वें और 9वें स्थान पर रहे। लेकिन बचपन से लड़ने के दमखम रखने वाला नीरज हार कैसे मान लेते। मेहनत दोगुनी की और उसके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद 2016 में हुए साउथ एशियन गेम्स और वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप, 2017 के कॉमनवेल्थ गेम्स और 2018 के एशियन गेम्स में नीरज ने लगातार अपने ही रिकॉर्ड तोड़ डाले और गोल्ड मेडल से कम कुछ भी स्वीकार ही नहीं किया। नीरज ने 2016 में पोलैंड में हुए IAAF वर्ल्ड U-20 चैम्पियनशिप में 86.48 मीटर दूर भाला फेंककर गोल्ड जीता। इसके बाद उन्हें भारतीय सेना में पदस्थ किया गया और नीरज बन गए सूबेदार नीरज चोपड़ा।

आज नीरज के सिर्फ परिवार को ही नहीं बल्कि पूरे भारत देश को उन पर गर्व है लेकिन उनके साथ उनके परिवार ने जो योगदान दिया, वह भी अतुलनीय है। शनिवार (07 अगस्त 2021) को जब हजारों मील दूर नीरज देश के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे थे तब यहाँ उनके गाँव में उनका पूरा परिवार साथ बैठकर उनका मुकाबला देख रहा था। दादा धर्म सिंह ने कहा कि उनके पोते ने देश के लिए मेडल जीतकर देश का और उनका नाम रोशन कर दिया। नीरज के चाचा भीम चोपड़ा को अपने भतीजे पर इतना भरोसा था कि उन्होंने पहले ही कह दिया था, “गोल्ड मेडल तो म्हारे छोरे का ही है।”

टोक्यो ओलंपिक में मिला मेडल, ट्रैक एंड फील्ड इवेंट्स यानी एथलेटिक्स में भारत का पहला मेडल है, जो कोई 10 या 20 साल बाद नहीं बल्कि 121 साल बाद मिला क्योंकि साल 1900 में ब्रिटिश इंडिया की ओर से खेलते हुए नॉर्मन प्रिटचार्ड ने एथलेटिक्स में गोल्ड जीता था लेकिन वह एक अंग्रेज थे, भारतीय नहीं। ऐसे में यह कहा जाना चाहिए कि नीरज द्वारा जीता गया मेडल ओलंपिक खेलों के इतिहास का एथलेटिक्स का पहला मेडल है। नीरज ने 13 साल बाद भारत को गोल्ड मेडल दिलाया है। इसके पहले साल 2008 में बीजिंग में हुए ओलंपिक में भारतीय निशानेबाज अभिनव बिंद्रा गोल्ड मेडल जीतने में सफल रहे थे।

ओलंपिक तक पहुँचने के पहले नीरज कई बार चोटिल हुए। चीन के वुहान शहर से निकले वायरस से वो खुद भी संक्रमित हुए लेकिन जैसा उन्होंने अपनी ट्वीट में लिखा, “जब लगातार काम करने के बाद थकावट न हो तो समझ लेना कि सफलता का नया इतिहास रचने वाला है” और आखिरकार अपने ट्वीट को सही साबित करते हुए नीरज चोपड़ा ने इतिहास रच ही दिया।

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