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राष्ट्रपति चुनाव: 1977 में बगैर चुनाव जीते एनएस रेड्डी, 1969 में उम्मीदवार पर बंट गई थी इंदिरा गांधी की कांग्रेस

नई दिल्ली। द्रौपदी मुर्मू या यशवंत सिन्हा? पूरे देश को इस सवाल का जवाब गुरुवार को मिल जाएगा। सोमवार को हुई वोटिंग के बाद आज राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे घोषित किए जाने हैं। कहा जा रहा है कि इस दौड़ में मुर्मू आगे चल रही हैं। अगर वह चुनी जाती हैं, तो देश में यह पहला मौका होगा जब आदिवासी महिला सर्वोच्च पद संभालेंगी। वहीं, प्रतिभा पाटील के बाद राष्ट्रपति बनने वाली वह दूसरी महिला भी हो सकती हैं। बात इतिहास की निकली है, तो कुछ चुनाव ऐसे भी हुए जिनकी राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं आज भी हैं।

बात साल 1957 की है। देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद दूसरी बार चुनावी मैदान में थे। उनके सामने चौधरी हरि राम और नागेंद्र नारायण दास थे। नतीजे आए, तो सभी हैरान थे। एक ओर जहां तत्कालीन राष्ट्रपति को 4 लाख 59 हजार 698 वोट मिले। वहीं, दास और राम मिलकर भी 5 हजार का आंकड़ा पार नहीं कर सके थे।

5 सालों के बाद यानि साल 1962 में डॉक्टर एस राधाकृष्णन, चौधरी हरि राम और यमुना प्रसाद त्रिशूलिया राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी पेश कर रहे थे। परिणाम  आए तो डॉक्टर राधाकृष्णन को जहां 5 लाख 53 हजार 67 वोट मिले, लेकिन दो अन्य उम्मीदवार आंकड़ों के लिहाज से लंबे पिछड़ गए।

राष्ट्रपति चुनाव के लिहाज से साल 1977 को सबसे खास माना जा सकता है। फरवरी 1977 में फखरुद्दीन अली अहमद के निधन के बाद हुए चुनाव में कुल 37 दावेदार शीर्ष पद के लिए सामने आ गए थे। जब छंटनी हुई, तो रिटर्निंग अधिकारी ने 36 नामांकनों को रिजेक्ट कर दिया। नतीजा यह हुआ का कि नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध जीत गए।

साल 1997 में भारत का 11वां राष्ट्रपति चुना जाना था। उस दौरान केआर नारायण और टीएन शेषन पद की दौड़ में थे। हालांकि, नारायण के 9 लाख 56 हजार 290 वोट के मुकाबले शेषन केवल 50 हजार 631 वोट ही हासिल कर सके थे।

चुनाव, जहां मामला बेहद नजदीकी रहा
साल 1967
 में कुल 17 उम्मीदवार मैदान में थे। उस दौरान डॉक्टर जाकिर हुसैन 4 लाख 71 हजार 244 मतों से जीते। वहीं, कोटा सुब्बाराव को 3 लाख 63 हजार 971 वोट मिले।

डॉक्टर हुसैन के निधन के बाद साल 1969 में वीवी गिरी कार्यवाहक राष्ट्रपति बन गए थे। पद पर दावेदारी पेश करने के लिए उन्होंने दोनों पदों से इस्तीफा दे दिया था। खास बात है कि चुनाव से पहले हुई सियासी गतिविधियों के चलते कांग्रेस भी बंट गई थी। दरअसल, इंदिरा गांधी सिंडिकेट गुट के नीलम संजीव रेड्डी का समर्थन नहीं करना चाह रही थीं। इधर, गांधी का समर्थन हासिल गिरी को चुनाव में 4 लाख 20 हजार 277 वोट मिले। वहीं, रेड्डी के खाते में 4 लाख 5 हजार 427 वोट आए थे।

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