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41 श्रमिकों के रेस्क्यू अभियान को आसान बनाने में जुटी है पारसन टीम और जियोफिजिस्ट डॉ संजय राणा

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए चलाए जा रहे रेस्क्यू ऑपरेशन में पारसन ओवरसीज की टीम प्रमुख भूमिका निभा रही है। टीम का नेतृत्व कर रहे मुख्य जियोफिजिस्ट डॉ. संजय राणा ने बताया कि 16 अक्टूबर को जैसे ही उनको इस संकट की सूचना मिली, उसके कुछ घंटों के भीतर ही उन्होंने अपनी टीम मौके पर रवाना कर दी थी। इस टीम के सदस्य भूवैज्ञानिक स्थितियों पर महत्वपूर्ण भूभौतिकीय इनपुट प्रदान करके बचाव कार्य में सहायता कर रहे हैं, जिनमें इसमें 3 जियोफिजिस्ट और 4 तकनीशियन शामिल हैं। पारसन का चालक दल ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार, विद्युत प्रतिरोधकता इमेजिंग, भूकंपीय प्रतिबिंब और मैग्नेटोमीटर उपकरण से सुसज्जित है।

नोएडा सेक्टर 122 निवासी डाक्टर संजय राणा ने बताते हैं कि जैसे एक्सरे के जरिये शरीर की जांच की जाती है, उसी तरह भूवैज्ञानिकों की टीम सुरंग की जांच कर पता लगाती है कि अंदर कहां, क्या-क्या चीज मौजूद हैं, ताकि ड्रिलिंग के दौरान किसी तरह का हादसा न हो। इसके लिए पारसन की टीम ने 100 मीटर से अधिक की गहराई की स्थिति निर्धारित करने के लिए टनल के टॉप पर विद्युत प्रतिरोधकता इमेजिंग को कंडक्ट किया। 800 मिमी क्षैतिज बोरहोल जरिये चुनौतीपूर्ण हालात में किए गए सर्वेक्षण में सुरंग के फेस से लगभग 2 मीटर, 3.4 मीटर, 4.1 मीटर और 5.6 मीटर की गहराई पर प्रमुख इंटरफेस की पहचान की गई। जीपीआर सर्वेक्षण करने के लिए केवल 800 मिमी फेस उपलब्ध था, और इसलिए एंटीना की आवाजाही संभव नहीं थी। लिहाजा एक व्यक्ति लगभग 46 मीटर दूर फेस तक पहुंचने के लिए 800 मिमी पाइप के माध्यम से रेंगता रहा, और वाई-फाई कनेक्टिविटी के माध्यम से डेटा को लैपटॉप कंप्यूटर तक ऑपरेट किया गया।

यह कार्य जियोफिजिस्ट चेंदूर भास्करन के विशेषज्ञ क्षेत्र पर्यवेक्षण और परसन के एमडी डॉ. संजय राणा के डेटा प्रोसेसिंग मार्गदर्शन के तहत आयोजित किया गया था। इसमें अन्य कर्मी भरत सिंह, विनीत गौतम और अजीत शामिल थे। डॉ. संजय राणा के मुताबिक ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार एक परिष्कृत तकनीक है जो उपसतह की तस्वीर लेने के लिए रडार पल्स का इस्तेमाल करती है और विभिन्न सामग्रियों से विद्युत चुम्बकीय तरंगों को दर्शाती है। जीपीआर का प्रभाव जमीनी संरचना, भौतिक गुणों और लक्ष्य विशेषताओं से प्रभावित होता है। उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। गौरतलब है कि भारतीय निजी क्षेत्र में निकट-सतह भूभौतिकीय सर्वेक्षण उपकरणों की सबसे बड़ी रेंज के साथ पारसन के पास इस क्षेत्र का व्यापक अनुभव है।

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