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राज्यसभा उपसभापति चुनाव : 41 साल बाद कांग्रेस के हाथ से फिसला ये पद

नई दिल्ली। राज्यसभा में उपसभापति के लिए हुआ चुनाव कई मायनों में अहम रहा. आम तौर पर संसद के उच्च सदन के लिए उपसभापति के लिए चुनाव आम सहमति से हो जाता था. लेकिन इस बार चुनाव की नौबत आ गई. ना तो भाजपा के पास नंबर थे और न ही कांग्रेस के पास. 26 साल बाद राज्यसभा में उपसभापति पद के लिए चुनाव हुए. इससे पहले 1992 में आखिरी बार चुनाव हुए थे. 1969 में पहली बार राज्यसभा उपसभापति के लिए चुनाव हुए थे. अब तक इस पद के लिए कुल 19 बार चुनाव हएु हैं. इसमें 14 बार तो आम सहमति के ही उपसभापति को चुन लिया गया है.

244 सदस्यों की राज्यसभा में इस बार जीत के लिए 123 सासंदों का समर्थन चाहिए था. यूपीए इस लड़ाई में इसलिए पिछड़ गई, क्योंकि भाजपा को सहयोग नहीं करने वाली पीडीपी, वाइएसआर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी ने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया. एनडीए के सदस्य को 125 वोट मिले, वहीं यूपीए को 105 वोट मिले. 1 जुलाई को पीजे कुरियन का कार्यकाल खत्म हो गया था.

सिर्फ दो बार दूसरी पार्टी के सदस्य बन सके उपसभापति
मई 1952 में कांग्रेस के एसवी कृष्णमूर्ति राव इस पद पर चुने जाने वाले पहले सदस्य थे. वह दो बार इस पद पर रहे. दिसंबर 1969 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया बीडी खोबरागडे पहले गैर कांग्रेसी सदस्य थे, जो इस पद पर चुने गए. उनके बाद संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के गोडे मुराहरि दो बार इस पद पर चुने गए. 1977 से अब तक कांग्रेस सदस्य ही उपसभापति पद पर चुना गया. करीब 41 साल बाद ये पहला मौका है, जब कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी पार्टी का सदस्य इस पद के लिए चुना गया है.

नजमा हेपतुल्ला सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहीं
नजमा हेपतुल्ला सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहीं. कांग्रेस सदस्य के तौर पर वह सबसे पहली बार 1985 से 1986 तक इस पद पर रहीं. दूसरी बार वह 1988 में उपसभापति चुनी गईं. इसके बाद वह 2004 तक लगातार इस पद पर रहीं. इस तरह वह लगातार 16 साल तक इस पद पर रहीं. उसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गईं.

भाजपा सदस्य को अब तक नहीं मिला ये पद
भाजपा के किसी सदस्य को अब तक ये पद नहीं मिला है. इस बार भी उसके और उसके सहयोगियों के पास इतने नंबर नहीं थे, जिनसे वह अपना उम्मीदवार खड़ा कर सकती. वाजपेयी सरकार के समय भी उपसभापति का पद कांग्रेस के पास ही था.

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