अनूप कुमार मिश्र
नई दिल्ली। याद करो कुर्बानी की 9वीं कड़ी के पहले भाग में 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के दौरान सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की वीरगाथा आपको बताने जा रहे हैं. सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को महाराष्ट्र के पूना शहर में हुआ था. सेंकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल के पिता एमएल खेत्रपाल भी भारतीय सेना में बिग्रेडियर के पद पर तैनात थे. अरुण ऐसे परिवार से ताल्लुकात रखते थे, जिसमें सेना के जरिए देश की सेवा करने की परंपरा थी. अरुण के सैन्य जीवन की शुरुआत 1967 में नेशनल डिफेंस अकादमी ज्वाइन करने के साथ शुरू हो गई थी. नेशनल डिफेंस अकादमी के बाद अरुण खेत्रपाल ने इंडियन मिलिट्री अकादमी में सैन्य प्रशिक्षण लिया. जिसके बाद, 13 जून 1971 में उनको 17 पूना हार्स में बतौर सेकेंड लेफ्टिनेंट कमीशंड किया गया.
लक्ष्य हासिल करने के लिए भारतीय सेना के पास बचा था एक विकल्प
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल के आर्मी में आगमन के साथ 1971 के भारत-पाक युद्ध का आगाज हो चुका था. कश्मीर को पंजाब से अलग करने की साजिश के तहत पाकिस्तानी सेना ने शकरगढ़ सेक्टर के अंतर्गत आने वाली बसंतर नदी के किनारे कब्जा जमा लिया था.
भारतीय सेना को रोकने के लिए इस जगह पर दुश्मन पाकिस्तानी सेना ने न केवल अपने टैंकों की पूरी फौज तैनात कर रखी थी, बल्कि पूरे इलाके को लैंडमाइन से पाट दिया था. ऐसी स्थिति में अखनूर में मौजूद दुश्मन सेना पर हमले के लिए भारतीय सेना का आगे बढ़ना मुश्किल पैदा कर रहा था.
दुश्मन को सबक सिखाने के लिए अब भारतीय सेना के पास एक ही विकल्प बचा था. इस विकल्प के तहत भारतीय सेना पहले बसंतर नदी को पार करे, फिर पाकिस्तान की सीमा में दाखिल होकर दुश्मन सेना पर सीधा हमला करे.
बसंतर नदी पर तैयार हुआ पुल, दुश्मन के घर में घुसकर दी शिकस्त
मौके की नजाकत को देखते हुए , 47 इंफैंट्री बटालियन और 17 पूना हार्स को शकरगढ सेक्टर के अंतर्गत आने वाली बसंतर नदी पर पुल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई. 47इंफैंट्री बटालियन ने अपनी यह जिम्मेदारी 15 दिसंबर की रात्रि नौ बजे पूरी कर दी थी.
बसंतर नदी में पुल बनने के बाद दूसरी बड़ी चुनौती भारतीय सेना की इंजीनियरिंग के विंग के लिए थी. भारतीय सेना की इंजीनियरिंग विंग को दुश्मन सेना द्वारा बिछाई गई माइनफील्ड को साफ करना था. जिससे, 17 पूना हार्स के सैनिकों को सुरक्षित रास्ता मुहैया कराया जा सके.
भारतीय सेना की इंजीनियरिंग टीम पूरी शिद्दत से इस कार्य को पूरा करने में लगी हुई थी. यह काम आधा ही पूरा हुआ था तभी, पाकिस्तानी सैनिकों की गतिविधियों के बाबत भारतीय सैनिकों को एक अहम गुप्त सूचना मिली. इस सूचना में यह भी बताया गया था कि दुश्मन सेना अपने टैंक सहित दूसरे लावलश्कर के साथ उनकी तरफ बढ़ रहा है.
भारतीय सेना ने खाक में मिलाए दुश्मनों के सात टैंक
मौके की स्थिति को भांपते हुए बसंतर नदी के तट पर मौजूद भारतीय सेना ने टैंक सपोर्ट की मांग अपने आला अधिकारियों से की. जिस पर तत्काल कार्रवाई करते हुए समीपवर्ती स्थानों में मौजूद टैंकों को मौके पर पहुंचने के निर्देश दिए गए. अब तक पाकिस्तानी सेना के टैंक बसंतर नदी के बेहद करीब पहुंच चुके थे.
पाकिस्तानी सेना के टैंक भारतीय सेना को अपना निशाना बनाते, इससे पहले कैप्टन वी.मल्होत्रा, लेफ्टिनेंट अहलावत और सेंकेड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल अपने टैंक के साथ रणभूमि में पहुंच चुके थे. भारतीय सेना के इन तीन टैंकों का सामना दुश्मन के दस टैंकों से होने वाला था.
युद्ध के आगाज के साथ भारतीय टैंकों ने चुन-चुन कर दुश्मन सेना के टैंक को निशाना बनाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते कैप्टन मल्होत्रा, लेफ्टिनेंट अहलावत और सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की तिकड़ी ने दुश्मन सेना के सात टैंकों को खाक में मिला दिया.
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण ने अकेले तबाह किए दुश्मन सेना के 4 टैंक
इस युद्ध में कैप्टन मल्होत्रा और लेफ्टिनेंट अहलावत बुरी तरह से जख्मी चुके थे. एक टैंक दुश्मन सेना के हमले का शिकार बन चुका था, जबकि दूसरा टैंक तकनीकी खराबी के चतले किसी काम का नहीं रहा था. लिहाजा, कैप्टन मल्होत्रा और लेफ्टिनेंट अहलावत को रण क्षेत्र से हटना पड़ा.
मुश्किल की इस घड़ी में अब दुश्मन सेना को नेस्तनाबूद करने की पूरी जिम्मेदारी सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल पर आ चुकी थी. जांबाज सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का टैंक अब दुश्मन सेना के तीन टैंकों के निशाने पर था. दुश्मन सेना के तीनों टैंक हर हाल में सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को अपना निशाना बनाना चाहते थे.
अब तक सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने अपने युद्ध कौशल और बुद्धिमत्ता से दुश्मन सेना के दो टैंक को अपने जाल में फंसा लिया था. दुश्मन सेना को जबतक कुछ समझ पाती, इससे पहले सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल के टैंक से निकले दो गोलों ने दुश्मन सेना के दोनों टैंकों को खाक में मिला दिया था.
दुश्मन के गोले का शिकार हुआ से.लेफ्टिनेंट अरुण का टैंक
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल अपने टैंक का रुख दुश्मन सेना के तीसरे टैंक की तरफ करते, इससे पहले एक गोला उनके टैंक पर आ गिरा. सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का टैंक अब आग की लपटों से घिर चुका था. इस स्थिति का पता चलने पर टैंक यूनिट कमांडर ने सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को टैंक को छोड़ वापस आने के निर्देश दिए.
जिस पर सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने अपना जवाब दिया कि ‘सर मैं अपने टैंक को लावारिस नहीं छोड़ सकता हूं, अभी मेरी गन काम कर रही है, मैं इन दुश्मन को अंजाम तक पहुंचाकर वापस आऊंगा.’ इसी दौरान, सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने देखा कि दुश्मन सेना का तीसरा टैंक उनसे महज 100 मीटर की दूरी पर है.
उन्होंने बिना समय गंवाए दुश्मन सेना के टैंक को अपनी गन से निशाना बनाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की गन से निकली मामूली गोली ने दुश्मन सेना के विशालकाय टैंक को तेज धमाके के साथ ध्वस्त कर दिया.
देश के लिए दिया सर्वोच्च बलिदान
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल अकेले दम अब तक दुश्मन सेना के चार टैंकों को खाक में मिला चुके थे. वह अपना रुख दूसरी तरफ करते, इससे पहले उनके टैंक पर एक गोला आकर गिरा और वे रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए. सेकेंड लेफ्टीनेंट अरुण खेत्रपाल के अदभुत शौर्य और पराक्रम के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.