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अयोध्या मामला: मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा, हिन्दू तालिबानियों ने गिराई थी मस्जिद

नई दिल्ली। अयोध्या मंदिर मस्जिद मामले में सुप्रीमकोर्ट 29 अक्टूबर को मुख्य विवाद पर सुनवाई शुरू करेगा. यह सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर होगी जिसे चीफ जस्टिस रंजन गोगाई, जस्टिस संजय किशन क़ौल और जस्टिस के एम जोसेफ की तीन जजों की बेंच करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को दिए आदेश में 1994 के सुप्रीम कोर्ट के उस पुराने फैसले को पुनर्विचार के लिये संविधान पीठ को भेजने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि ‘मस्जिद में नमाज़ इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. इसके साथ ही राजनैतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या भूमि मालिकाना हक से संबंधित मुख्य विवाद पर सुनवाई करने का रास्ता साफ हो गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1994 के फैसले में यह टिप्पणी अयोध्या मामले पर सुनवाई के दौरान ‘भूमि अधिग्रहण के सीमित संदर्भ में की गई थी.

शीर्ष अदालत ने 2-1 से बहुमत के फैसले में साफ कर दिया कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक विवाद पर फैसला करने के लिये यह प्रासंगिक नहीं है. इस मामले में अंतिम फैसले का 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले काफी उत्सुकता से इंतजार रहेगा.

अयोध्या मामले की पिछली सुनवाइयों के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि अयोध्या मामले में मूल पहलू पर सुनवाई शुरू करने से पहले सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच यह तय करने के लिए मामले को संवैधानिक बेंच को भेजे, जो यह तय करे कि मस्जिद में नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अभिनन हिस्सा है या नहीं.

मुस्लिम पक्ष की तरफ से बहस करते हुए राजीव धवन ने तालिबान की ओर से बुद्ध की मूर्ति तोड़े जाने का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें ये कहने में कोई संकोच नही कि कि 1992 में जो मस्जिद गिराई गई वो हिन्दू तालिबानियों द्वारा गिराई गई.

                                         अयोध्या विवाद में एडवोकेट राजीव धवन मुस्लिम पक्ष के वकील हैं.

मुस्लिम पक्ष की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार को इस मामले में नियुट्रल भूमिका रखनी थी, लेकिन उन्होंने इसको तोड़ दिया. वहीं सुनवाई में शिया वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से कहा गया हम इस महान देश में सौहार्द, एकता, शांति और अखंडता के लिए अयोध्या की विवादित ज़मीन पर मुसलमानों का हिस्सा राम मंदिर के लिए देने को राज़ी हैं.

दरअसल, 1994 में पांच जजों के पीठ ने राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था, ताकि हिंदू पूजा कर सकें. पीठ ने ये भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई राम लला को दिया था. हाईकोर्ट के इस फैसले के ख़िलाफ़ 29 अक्टूबर को सुनवाई होगी.

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