Tuesday , May 7 2024

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने भारत से मांगी आपात मदद

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अत्मार ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को फोन कर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक बुलाने को लेकर बात की है. इसे लेकर अफगानिस्तान ने भारत से मदद मांगी है. भारत इस महीने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष है यानी ऐसी किसी भी तरह की बैठक बुलाने में भारत की भूमिका अहम है.

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अफगान विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अत्मार ने एस जयशंकर से बात करने के बाद मंगलवार रात ट्वीट कर बताया, ”भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को फोन कर बात की और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफगानिस्तान पर सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक बुलाने की मांग की. संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान की हिंसा और जुल्म के खिलाफ बड़ा कदम उठाने की जरूरत है. यूएनएससी में अध्यक्ष के रूप में हम भारत की प्रशंसा करते हैं.”

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अफगानिस्तान विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ”मंगलवार शाम अफगान विदेश मंत्री और भारतीय विदेश मंत्री के बीच तालिबान की बढ़ती हिंसा, मानवाधिकारों के उल्लंघन के साथ अफगानिस्तान में विदेशी आतंकवादी समूह के ऑपरेशन पर बात हुई. हमने भारतीय विदेश मंत्री से अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक बुलाने की मांग की है. भारत अभी यूएनएससी का अध्यक्ष है.”

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अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि अफगान विदेश मंत्री अत्मार ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से कहा कि तालिबान की बढ़ती क्रूरता से कई आम लोगों की जान जा रही है. इस बातचीत के दौरान अफगान विदेश मंत्री ने तालिबान और विदेशी आतंकवादी गिरोहों के गठजोड़ को भी उठाया. अत्मार ने कहा कि तालिबान अंतरराष्ट्रीय नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है.

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अफगान विदेश मंत्री ने कहा कि तालिबान की हिंसा और उसे मिल रही विदेशी मदद से अफगानिस्तान की शांति और स्थिरता खतरे में है और इसके बहुत बुरे परिणाम होंगे. अफगान विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारतीय विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान में बढ़ती हिंसा को लेकर चिंता जताई. अफगान विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि जयशंकर ने यूएन की आपातकालीन बैठक बुलाने के प्रस्ताव की समीक्षा कर रहे हैं और इसके लिए बाकी सदस्यों से बात करेंगे. दोनों विदेश मंत्रियों के बीच कतर के दोहा में अफगान शांति वार्ता के आयोजन पर भी बात हुई.

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अफगानिस्तान के संकट को लेकर भारत अभी सबसे बड़ी दुविधा में है. भारत अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार के साथ है लेकिन तालिबान को नजरअंदाज करना भी भारत के लिए अब मुश्किल हो गया है. पिछले हफ्ते मंगलवार को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन जब भारत के पहुंचे थे तो तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल चीन के दौरे पर था. तालिबान के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मुल्लाह अब्दुल गनी बरादर कर रहे थे. इस प्रतिनिधिमंडल से चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले हफ्ते बुधवार को उत्तरी चीन के तिआनजिन में मुलाकात की थी. तालिबान के प्रतिनिधिमंडल के दौरे को लेकर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजिअन ने कहा कि तालिबान नेताओं ने चीन को आश्वस्त किया है कि अफगानिस्तान की जमीन से किसी भी तरह की चीन विरोधी गतिविधि नहीं होने दी जाएगी.

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तालिबान ने ये भी कहा कि वह भविष्य में अफगानिस्तान के विकास में चीन की अहम भूमिका चाहता है. चीन के लिए अफगानिस्तान काफी अहम है. मध्य एशिया पहुंचने के लिए अफगानिस्तान सबसे बेहतर जरिया है. चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर यानी सीपीईसी की सुरक्षा के लिए भी तालिबान का साथ चीन के लिए अहम है. पाकिस्तान में चीन की यह सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है. 60 अरब डॉलर की यह चीनी परियोजना अफगानिस्तान और तालिबान के साथ के बिना अधूरी है. ऐसे में चीन ने अफगानिस्तान की सरकार और तालिबान दोनों से अच्छे संबंध रखे हैं. अगर अफगानिस्तान की सरकार जाती भी है और तालिबान सत्ता में आता है तो चीन के लिए सौदा करना मुश्किल होता नहीं दिख रहा है. दूसरी तरफ भारत ने अनाधिकारिक रूप से तालिबान से बातचीत देर से शुरू की. भारत अफगानिस्तान की सरकार के साथ रहा और तालिबान को जैसे अमेरिका देखता था, उसी तरह से भारत भी देखता रहा.

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एशिया प्रोग्राम के डेप्युटी डायरेक्टर माइकल कगलमैन ने फॉरन पॉलिसी मैगजीन में लिखा है, ”भारत और अमेरिका के हित कई मोर्चों पर साझे हैं लेकिन अफगानिस्तान का मामला अलग है. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने सेना की वापसी का फैसला लिया तो स्वाभाविक रूप से तालिबान मजबूत हुआ. तालिबान के मजबूत होते ही अफगानिस्तान में भारतीय हितों पर हमला लाजिमी था. तालिबान अब सत्ता तक पहुंचता दिख रहा है और यह पाकिस्तान के हित में है. 2001 में अमेरिकी बलों के आने के बाद से अफगानिस्तान में पाकिस्तान समर्थित सरकारें नहीं रहीं.”

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माइकल कगलमैन ने लिखा है, ”भारत ने अफगानिस्तान में बड़ा निवेश कर रखा है. 2001 के बाद से भारत ने अफगानिस्तान को तीन अरब डॉलर की आर्थिक मदद की है. तालिबान के बेदखल होने के बाद से अफगानिस्तान की सभी सरकारें भारत के करीब रहीं. लेकिन चीन और पाकिस्तान भारत के लिए बड़े तनाव बनकर उभरे हैं. अफगानिस्तान से अमेरिका के जाने के बाद जो खालीपन होगा, उसे चीन और पाकिस्तान भरते दिख रहे हैं.”

भारत ने पिछले कुछ हफ्तों में अफगानिस्तान को लेकर अपनी नीति में बदलाव की कोशिश की. जून में भारत ने तालिबान के साथ पहली बार औपचारिक बातचीत शुरू की. भारत ने अफगानिस्तान को लेकर अपनी नीति का दायरा बढ़ाया और मध्य एशिया में अफगानिस्तान को लेकर हुई कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्री एस जयशंकर तक शामिल हुए. कई विश्लेषकों का कहना है कि भारत ने तालिबान से बातचीत शुरू करने में देर कर दी और अहम रणनीतिक मौके गंवा दिए.

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