नई दिल्ली। जेल मे बंद कैदियों के सुधार के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर व्यक्ति चाहे वह कैदी ही क्यों न हो उसको संविधान के तहत अधिकार मिले हुए है, उसको अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट मित्र ने कहा जिस कैदी को फांसी की सजा मिल जाती है उसको तन्हाई में रख दिया जाता है, ये उसके अधिकारों का हनन है. कोर्ट ने सहमति जताते हुए कहा कि उसको जेल के अंदर नार्मल लाइफ जीने का अधिकार है. उसको रोका नहीं जा सकता लेकिन 1978 के बत्रा फैसले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये जेल अथॉरिटी को ही तय करना है कि कैदी को कैसे रखा जाए.
कोर्ट ने कहा कि इस फैसले को 40 साल हो गए, स्थितियां बदल चुकी है. उस समय आतंकवाद नहीं था. क्या किसी कैदी, जिसको आतंकवादी गतिविधियों में सजा हुई है, उसको जेल के अंदर सबके साथ रहने दिया जा सकता है? क्या वो दूसरे कैदी का माइंडसेट बदल नहीं सकता? क्या अपनी बातों से उस प्रभावित नहीं कर सकता? ये सब देखना होगा और बीच का रास्ता निकालना होगा.कोर्ट मित्र ने कहा वो सभी राज्यों के जेल मैनुअल का अध्ययन कर कोर्ट के सामने अपनी बात रखेंगे. इस मामले की अगली सुनवाई 2 हफ्ते बाद होगी.
इससे पहले देश की जेलों में हिरासत के दौरान होने वाली खुदकुशी समेत अप्राकृतिक मौतौं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी. सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से कहा है कि जेल में खुदकुशी समेत सभी अप्राकृतिक मौतों के मामलों में कैदी के परिवार को उचित मुआवजा देने के लिए स्वत: संज्ञान लेकर जनहित याचिका पर सुनवाई की थी. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के दिए डेटा के मुताबिक 2012 से 2015 के बीच जेलों में हुई सभी अप्राकृतिक मौतों के मामलों का पता लगाने और उनके परिवार को उचित मुआवजा दिलाने के आदेश दिए जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में जेल सुधार के लिए ये दिशानिर्देश जारी किए हैं.