Thursday , March 28 2024

हमारे कॉलमिस्ट

कॉन्ग्रेस का कोढ़ है धर्मांतरण, रोकने को देर से बने कानून कितने दुरुस्त?

आनंद कुमार  बराबरी का अधिकार संविधान ही छीन लेता है। जब अनुच्छेद 25(1) में कहा जाता है कि “सभी लोग”, ध्यान दीजिये, सभी लोग, सिर्फ “भारतीय नागरिक” नहीं, कोई भी अपने पंथ को मानने, उसका अभ्यास करने और उसके प्रचार के लिए स्वतंत्र है तो ये भारत में बाहर कहीं ...

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आखिर क्यों पीएम बार-बार कर रहे वन नेशन वन इलेक्शन की बात

राजेश श्रीवास्तव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को संविधान दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने एक बार फिर देश के लिए वन नेशन-वन इलेक्शन को जरूरी बताया। पीएम मोदी ने कहा कि देश में हर कुछ महीने में कहीं ना कहीं चुनाव हो रहे ...

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“विधायक जी की जनसेवा”

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल नेताजी जो कल तक रसूखदारों के पीछे-पीछे जयकारे लगाते हुए घूम रहे थे ।समय पलटा चरणचुम्बन करते-करते नेताजी को विधानसभा के चुनाव में करोड़ों की रकम जिसे राजनीति की भाषा में पेटी कहा जाता है ,उसके बदौलत तथा शहर की कई एकड़ जमीन की सौदेबाजी के बाद ...

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दीप्रिंट वालो! ‘लव जिहाद’ हिन्दू राष्ट्र का आधार नहीं, हिन्दू बच्चियों को धोखेबाज मुस्लिमों से बचाने का प्रयास है

जयन्ती मिश्रा ‘लव जिहाद’ के नाम पर आज कल वामपंथी गिरोह ने एक नया एजेंडा चलाना शुरू किया है। अपने इस एजेंडे के तहत ये लोग इस बात को साबित करना चाहते हैं कि समाज में ऐसी कोई अवधारणा मौजूद ही नहीं है जो लव जिहाद की प्रमाणिकता को सिद्ध ...

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‘मोदी है तो मुमकिन है’, यह कोई चुनावी नारा नहीं भारतीय राजनीति की हकीकत है

नीरज कुमार दुबे ‘मोदी है तो मुमकिन है’, अब यह नारा नहीं बल्कि एक हकीकत बन चुका है। बिहार विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत ना सिर्फ सबसे बड़े दल का खिताब हासिल किया बल्कि अपने जबरदस्त स्ट्राइक रेट की बदौलत एनडीए की सरकार ...

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सपा-बसपा ना तो मिल कर और ना ही अलग होकर भाजपा को चुनौती दे पा रहे हैं

अजय कुमार गैर भाजपाई दलों के लिए उत्तर प्रदेश की सियासी डगर लगातार ‘पथरीली’ होती जा रही है। 2022 के विधान सभा चुनाव से पूर्व सम्पन्न अंतिम उप-चुनाव के नतीजों ने यह बात एक बार फिर साबित कर दी है। सात में से छह विधानसभा सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों का जीतना काफी ...

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कलम के साथियों आप खुद तय करिये अपनी कीमत, वरना…

राजेश श्रीवास्तव पिछले कुछ दिनों में देश ने मीडिया का ऐसा चेहरा देखा है जो आम जनता को भले ही सिर्फ एक खबर को एहसास कराता हो लेकिन पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए यह एक नसीहत और सीखने-सिखाने का समय है। लंबे समय से हम यह सुनते आ रहे ...

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लव जेहाद ही नहीं , , किसी भी जेहाद से मुक्ति पाने के लिए फ़्रांस मॉडल पूरी दुनिया के लिए अब एक मॉडल है

दयानंद पांडेय लव तो एक बहुत ही पवित्र शब्द है लेकिन लव जेहाद बहुत बड़ा कोढ़ है भारतीय समाज के लिए। इस लव जेहाद और ऐसी तमाम अन्य मुश्किलों से निजात पाने के लिए फ़्रांस और अमरीका की तरह सख्त होना पड़ेगा। ख़ास कर फ़्रांस मॉडल पूरी दुनिया के लिए ...

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मां के बनाए काजल की कालिख से मुनव्वर राना ने अपना चेहरा काला कर लिया

दयानंद पांडेय यह अच्छा ही हुआ कि मुनव्वर राना के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस ने सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने के आरोप में लखनऊ में एफ आई आर दर्ज कर ली है। एफ आई आर हुई है तो कार्रवाई भी होगी ही। कुछ साल पहले लखनऊ के एक सेमीनार में हिंदी , उर्दू दोनों ही भाषा ...

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अभिव्यक्ति की आजादी की लक्ष्मण रेखा कहां हो…

चंद्र भूषण पांडे लोकतंत्र अपने वसूलों पर चलता है। लोकतंत्र में परंपराओं का बड़ा महत्व है। लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांत की जब चर्चा आती है तब अभिव्यक्ति की आजादी की बात जरूर होती है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अभिव्यक्ति की आजादी के सहारे लोकतंत्र को निखारता है, समृद्ध करता है ...

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जनसंघ: ‘राष्ट्रवाद’ को आवाज देने वाला पहला राजनीतिक दल, जिसके कार्यकर्त्ता सीमा से सियासत तक डटे रहे

विभव देव शुक्ला देश के एक राजनीतिक दल से कितनी आशा की जानी चाहिए? एक राजनीतिक दल संकट के दौर में देश और देश की जनता के लिए कितनी अहम भूमिका निभाता है? इन सवालों के जवाब तलाशने पर पता चलता है कि जनता हर राजनीतिक दल का चुनाव करने ...

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योगी ने खुद को साबित कर दिया

राजेश श्रीवास्तव अगर आपसे पूछा जाए कि पूरे देश में आपको कौन से मुख्यमंत्री का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में सुनने को मिलता है तो निश्चित रूप से आपकी जुबां पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ही नाम आएगा। ऐसा नहीं कि वो भारतीय जनता पार्टी के हैं ...

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भारत के परिपेक्ष्य में निरर्थक शब्द मात्र है सेक्युलरिज्म

सर्वेश तिवारी श्रीमुख मुझे मेरे एक मित्र ने कहा कि ‘सेक्युलरिज्म’ को परिभाषित कीजिये। मैं हमेशा मानता रहा हूँ कि भारत के परिपेक्ष्य में सेक्युलरिज्म एक निरर्थक शब्द है। यहाँ कोई व्यक्ति निरपेक्ष नहीं होता! न धन से, न धर्म से… जब लगातार दस वर्ष तक देश के उपराष्ट्रपति रह ...

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गद्दारी और खुद्दारी के दो पाटों में फँसे हैं प्रत्याशी

“मध्यप्रदेश में हो रहे विधानसभा उपचुनाव में उतरे प्रत्याशियों की स्थिति लुटे हुए मेले के मदारियों जैसी है। उनके डमरू बजाने और बंदरों सी कला के दिलचस्प तमाशे के बाद भी मजमें नहीं भर रहे हैं। कोरोना के मारे वोटर को यह सब कोढ़ में खाज सा लग रहा है।” ...

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लोहिया की नसीहत; लोकतंत्र में विपक्ष का मतलब विरोधी नहीं

जयराम शुक्ल डाक्टर राममनोहर लोहिया के व्यक्तित्व के इतने आयाम हैं जिनका कोई पारावार नहीं। उनसे जुडा़ एक प्रसंग प्राख्यात समाजवादी विचारक जगदीश जोशी ने बताया था, जो विपक्ष के विरोध की मर्यादा और उसके स्तर के भी उच्च आदर्श को रेखांकित करता है। बात तिरसठ-चौंसठ की है। लोहिया जी ...

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